#संस्कारों का व्यक्ति से सम्बन्ध।
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Good manners - a happy, peaceful and successful basis in hindi
Good manners – a happy, peaceful and successful basis in hindi
Kmsraj51 की कलम से…..
ϒ अच्छे संस्कार – सुखी, शांतिमय व सफलता का आधार। ϒ
Good manners – a happy, peaceful and successful basis.
तेजी से बदलते सामाजिक एवं पारिवारिक ताना-बाना के बीच आज लोग व्याकुल हो रहे है। अपनी व्यस्तता के बीच एकल परिवारों में बच्चों में संस्कारों के बीज बोना बेहद मुश्किल होता जा रहा है। इससे बचा जा सकता है, यदि बच्चों को बचपन से ही ईश्वर के मार्ग पर डाल दिया जाए।
संस्कारवान…
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"मानव अधिकारों के संरक्षण में संस्कारों की भूमिका"विषय पर उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय हरिद्वार में हुई संगोष्ठी आयोजित
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"मानव अधिकारों के संरक्षण में संस्कारों की भूमिका"विषय पर उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय हरिद्वार में हुई संगोष्ठी आयोजित
ऋषिकेश दिनांक 3 दिसंबर 2021 उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय, हरिद्वार एवं मानव अधिकार संरक्षण समिति, मुख्यालय, हरिद्वार के संयुक्त तत्वाधान मे “मानव अधिकारों के संरक्षण में संस्कारों की भूमिका” विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गयी| सर्वप्रथम वेद विभाग के डॉ अरुण कुमार मिश्रा ने मंत्रोचारण से वेबिनार का शुभारंभ किया | न्यायमूर्ति, यू0सी0 ध्यानी(सेवानिवृत्ति), अध्यक्ष उत्तराखण्ड लोक सेवा अभिकरण ने मुख्य अतिथि बतौर कहा कि ‘माता-पिता के संस्कार बच्चे को भविष्य का मार्ग दिखाते हैं’ माता-पिता स्वयं मर्यादित और संस्कार वाला जीवन जिये। माता-पिता युवाओं को संस्कारों की शिक्षा देने वाले प्रथम गुरु होते है। संस्कार के बिना मर्यादा वाला जीवन नहीं बन सकता। 10 दिसंबर’ को पूरी दुनिया में मानवाधिकार दिवस के रूप में मनाया जाता है। 10 दिसंबर 1948 को संयुक्त राष्ट्र की साधारण सभा ने संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकारों की विश्वव्यापी घोषणा को अंगीकृत किया गया। पिछले कुछ वर्षों में आयोग ने विशेष रूप से मानव अधिकार शिक्षा को बढ़ावा देने हेतु कई कदम उठाए हैं। आयोग ने हमारे देश में मिट्टी में इसकी जड़ें गहराई तक ले जाने के लिए सर्वप्रथम हमारे समाज के तीन मुख्य क्षेत्रों पर ध्यान केन्द्रित किया।
उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय, हरिद्वार के कुलपति प्रोफेसर देवी प्रसाद त्रिपाठी ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुये कहा कि मानव अधिकार की रक्षा हमारी संस्कृति का अहम हिस्सा है। हमारी परम्पिराओं में हमेशा व्यक्ति के जीवन निमित समता, समानता उसकी गरिमा के प्रति सम्मान, इसको स्वी्कृति मिली हुई है। उन्होने कहा – ‘सर्वे भवन्तु सुखेन’ की भावना हमारे संस्कािरों में रही है। वास्तव में प्रत्येक व्यक्ति को ऐसे जीवनस्तर को प्राप्त करने का अधिकार है, जो उसे और उसके परिवार के स्वास्थ्य, कल्याण और विकास के लिए आवश्यक है। मानव अधिकारों में आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों के समक्ष समानता का अधिकार एवं शिक्षा का अधिकार आदि नागरिक और राजनीतिक अधिकार भी सम्मिलित हैं। मानव अधिकार संरक्षण समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष इं0 मधुसूदन आर्य ने कहा कि मानवाधिकार का सम्बन्ध समस्त मानव जाति से है। जितना प्राचीन मानव है, उतने ही पुरातन उसके अधिकार भी हैं। इन अधिकारों की चर्चा भी प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप में प्रारम्भ से ही होत�� आई है, भले ही वर्तमान रूप में मानवाधिकारों को स्वीकृति उतनी प्राचीन न हो किन्तु साहित्य तथा समाज में मनुष्यों के सदा से ही कुछ ���र्वमान्य तथा कुछ सीमित स्थितियों में मान्य अधिकार रहे हैं। उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय, हरिद्वार के कुलसचिव गिरीश कुमार अवस्थी धन्यवाद ज्ञापित करते हुये कहा कि कि मानव अधिकार और शिक्षा एक दूसरे से घनिष्ठ रूप से जुड़े हैं। मानव अधिकारों को समाज में स्थापित करने के लिए यह जरूरी है कि मानवीय गरिमा और प्रतिष्ठा के बारे में जन-जागरूकता लाई जाए। जागरूकता और चेतना के लिए शिक्षा ही सर्वाधिक उपयुक्त साधन है इस दृष्टि से शिक्षा के अधिकार के अंतर्गत ही मानावाधिकारों की शिक्षा भी शामिल है। मानव अधिकार संरक्षण समिति की राष्ट्रीय महिला अध्यक्ष डा0 सपना बंसल, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली ने कहा कि मनुष्य के रूप में जन्म लेते ही हम सभी सार्वभौमिक मानव अधिकारों के स्वतः अधिकारी हो जाते हैं। यह एक ऐसा अधिकार हे जो जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त सम्मानजनक तरीके से सभी को मिलना चाहिये। मानवाधिकार मनुष्य के वे मूलभूत सार्वभौमिक अधिकार हैं जिनसे मनुष्य को नस्ल, जाति, राष्ट्रीयता, धर्म, लिंग आदि किसी भी दूसरे कारक के आधार पर वंचित नहीं किया जा सकता। सभी व्यक्तियों को गरिमा और अधिकारों के मामले में जन्मजात स्वतंत्रता और समानता प्राप्त है। संगोष्ठी का संचालन डा0 लक्ष्मी नारायण जोशी, छात्र कल्याण अधिष्ठाता उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय, हरिद्वार ने किया| उन्होने कहा भारतीय परिप्रेक्ष्य में प्राचीन संस्कृत साहित्य में ”सर्वेभवन्तुसुखिनः” का उल्लेख मानव अधिकारों की पुष्टि करता हैं| उन्होने कहा कि सामान्य रूप से मानवाधिकारों को देखा जाए तो मानव जीवन में भोजन पाने का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, बाल शोषण, उत्पीड़न पर अंकुश, महिलाओं के लिए घरेलू हिंसा से सुरक्षा, उसके शारीरिक शोषण पर अंकुश, प्रवास का अधिकार, धार्मिक हिंसा से रक्षा आदि को लेकर बहुत सारे कानून बनाए गए हैं जिन्हें मानवाधिकार की श्रेणी में रखा गया है। ये अधिकार सभी अन्योन्याश्रित और अविभाज्य हैं। मानव अधिकार का ढांचा मानव अधिकारों की शक्ति का सही उपयोग करने के लिए उनकी पर्याप्त जानकारी एवं आम लोगों तक उनकी पहुंच अतिआवश्यक है। इस वेबिनार में मानव अधिकार संरक्षण समिति के लायन्स एस आर गुप्ता, राजीव राय, अनिल कंसल, कमला जोशी, नीलम रावत, शोभा शर्मा, हेमंत सिंह नेगी, रेखा नेगी, नेहा, उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय, हरिद्वार से ज्योति कल्पना शर्मा, निवेदिता सिंह, पीयूष गोयल, समीक्षा अग्रवाल, सतीश शेख��, शैली शर्मा, स्वीटि चौहान, बन्दना मिश्रा, विनोद बहुगुणा, रचना शास्त्री, यज्ञ शर्मा, सुभद्रा देवी, अरुण कुमार मिश्रा, अनु चौधरी, अनुपम कोठारी, राकेश कुमार गर्ग, पिंकी रावत, तरुण कुमार पांडे, प्रेमा श्रीवास्तव, डॉ अभिजीत, मोनु मीना इत्यादि उपस्थित रहे |
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समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए किस देवी-देवता की करनी चाहिए उपासना
समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए किस देवी-देवता की करनी चाहिए उपासना
समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए किस देवी-देवता की करनी चाहिए उपासना
ऐसी मान्यता है कि हर व्यक्ति के एक ईष्टदेव या देवीहोती हैं. उनकी उपासना करने से व्यक्ति को जीवन में उन्नति प्राप्त होती है. इनका निर्धारण लोग कुंडली के आधार पर करते हैं. वास्तव में ग्रहों का और ज्योतिष का ईष्टदेव से सम्बन्ध नहीं होता है, बल्कि ईष्टदेव या देवी का निर्धारण आपके जन्म जन्मान्तर के संस्कारों से होता है. बिना किसी कारण…
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